शनिवार, 27 फ़रवरी 2010

दर्द दिल मे लिए


होली आते ही जो चरित्र सबसे पहले आँखों के आगे आता है वो है कृष्ण का। मुस्कुराते , होठो से बांसुरी लगाये हुए मस्ती के आलम में होली खेलते कृष्ण। लगता है कि दुःख तकलीफ और सांसारिक बन्धनों से कहीं दूर है कृष्ण। लेकिन मुझे लगता है कि जीवन भर कृष्ण ने खोने के सिवा पाया कुछ भी नहीं। उनकी मुस्कराहट ने किसी को ये सोचने का मौका ही नहीं दिया कि कारागार में जन्म लेकर अपनी जननी को, बड़े होते ही प्रेमिका और मित्रो समेत अपनी माँ यशोदा को खोने वाला कृष्ण कभी दुखी भी हुआ या नहीं। शायद इसीलिए उन्हें छलिया कहा गया है।



दर्द दिल में लिए कृष्ण चल तो दिए,
मुस्कुराते रहे हर घडी ।
आंसुओ पे उन्हें था भरोसा बहुत,
ना बहे ना बहे वो कभी।
दर्द दिल में लिए कृष्ण ..........


तेज कदमो से आगे बढे वो मगर,
भारी मन हो सका ना किसी से जुदा।
वो तड़पते रहे आगे बढ़ते रहे,
सोचकर अब नहीं होगा मिलना मेरा।

याद आई सभी की जहां भी गए।
हाल मन का वहां पर वो किससे कहें ,
कोई समझे नहीं इसलिए सब सहा
दर्द सहकर भी वो मुस्कुराते रहे ।

ढूंढा सारा महल, खोजा सारा नगर,
शांत चित्त हो सका ना कहीं भी मगर,
जब भी यमुना कि लहरों पे नजरें पड़ीं ,
ग्वाल बाले सभी याद आने लगे।

थी तपन धुप की दूर उनसे बहुत,
याद आता रहा माँ का आँचल बहुत,
छाँव भी धुप सी उनको तीखी लगी,
जब दिखी ना कहीं माँ वो अंचल लिए।

उनकी मुरली कि धुन पे तो नाचा जगत,
हाल मन का नहीं कोई समझा मगर,
कष्ट मन का जो जागा मधुर हो गया,
जब हो तनहा वो मुरली बजाने लगे।

इस जगत ने कहा कृष्ण क्यों चल दिए,
छोड़ कर उन सभी को जो उनके ही थे,
पाया क्या कृष्ण ने जो चले छोड़ कर ,
उम्र भर वो जिए सबको खोते हुए।