गुरुवार, 16 जून 2011

कार्ल मार्क्स की यादगार और प्रेरक कविता

इतनी चमक दमक
के बावजूद
तुम्हारे दिन तुम्हारे जीवन
को सजीव बना देने के इतने सवालो
के बावजूद
तुम इतने अकेले क्यों हो
मेरे दोस्त

जिस नौजवान को
कविताएं लिखने और
बहसों में शामिल रहना था
वो आज सडको पर लोगो से एक सवाल
पूछता फिर रहा है
की महाशय आपके पास क्या मेरे लिए कोई
कोई काम है

वो नवयुवती जिसके हक में
जिंदगी की सारी खुशिया होनी चाहिए थी
वो इतनी सहमी सहमी
और नाराज क्यों है

अदम्य रौशनी के
बाकी विचार भी
जब अँधेरे बादलों
से आच्छादित है
जवाब मेरे दोस्त
हवाओ में तैर रहे है

जैसे हर किसी को
रोज खाना चाहिए
नारी को चाहिए
अपना अधिकार
कलाकार को चाहिए
रंग और तुलिका
उसी तरह
हमारे समय के संकट को चाहिए
एक विचार और आह्वान

अंतहीन संघर्षो, अनंत उत्तेजनावो
सपनो में बंधे
मत ढालो यथास्थिथि के अनुसार
मोडो दुनिया को अपनी ओर
समो लो अपने भीतर
समस्त ज्ञान
घुटनों के बल मत रैंगो
उठो
गीत, कला और सच्चाई की
तमाम गहराइयों की थाह लो.