शुक्रवार, 28 अगस्त 2009

क्या लिखूं


क्या लिखूं जब शांत चित्त मेरा नही है ,
तन कहीं है और मेरा मन कहीं है।
किस तरह अब रण विजय बोलो करूँगा,
सर कहीं है और मेरा धड कहीं है।

सोचता हूँ कुछ, कभी कुछ और कुछ ,
पर ठहरता है नही मन में कभी कुछ ।
ऐश्वर्या देखा और पल में पतन भी ,
अनंत पर निकले अभी और थक गया ये तन कभी।
कभी रोया और हंसने भी लगा मै आप ही ,
कारण वही था और न बदली ही कोई बात थी।
कभी मंजिल कि तरफ़ मै बढ़ गया निर्भीक हो,
कभी डरकर पूछने मै लगा ख़ुद से कौन हो।
यों ही मिलती है मुझे संसार कि सारी खुशी,
और पल मे जाने क्यों यों ही मेरा मन है दुखी ।
कभि शांत चित्त मेरा हृदय, मुझको परम संतोष है ,
कभि प्राप्त करना विश्व का मुझको समस्त ऐश्वर्या है।

इसी द्विविधा के बवंडर में मेरे अस्तित्व की,
छत कहीं है और दीवारे कही है।
क्या लिखूं जब शांत चित्त मेरा नही है ,
तन कहीं है और मेरा मन कहीं है।

4 टिप्‍पणियां:

  1. ranvijayji paisawasool kavitaayen likhte hain aap.dhanya ho gaye .ek bat aapko ran me vijay to jaroor milegi .meri shubh kamana aapke sath hai.

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  2. रणविजय जी
    आपकी कविता पढ़ कर मुझे गमन फिल्म का गीत याद आ गया सीने में जलन आँखों में तूफ़ान सा क्यों है इस शहर में हर शख्स परेशान सा क्यों है
    दोस्त यही जिन्दगी है
    थोड़ी खट्टी थोड़ी मीठी
    वो कहते हैं न दुनिया में आयें हैं तो जीना ही पड़ेगा जीवन अगर जहर तो पीना ही पड़ेगा
    शिव बनने पर बधाई \
    विष को गरल बनाने की कोशिश करते रहिये

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  3. रणविजय जी आपका ब्लॉग देख रहा था आपको बहुत बाद में पता पड़ा कि आपको क्या करना है मित्र जब पता चल गया है तो करते क्यों नैन सिर्फ ब्लॉग बना कर एक पोस्ट डाल कर आप शांत बैठ गए दुनिया बदलनी है तो प्रयास तो करते रहने पड़ेंगे

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  4. kuch lines yaad aati hain.....
    APNI MARZI SE KAHAN APNE SAFAR K HUM HAIN,
    RUKH HAWAO KA JIDHAR KA HAI, UDHAR K HUM HAIN.
    CHALTE REHTE HAIN K CHALNA HAI MUSAFIR KA NASIB,
    KISKO MALUM HAI KIS RAAHGUZAR K HUM HAIN.

    Ranvijay bhai... apni noori shakhsiyat ko bakhubi bayaan kar paane ki badhayi. parmatma apko chain-o-aman bakhshe aur zindgi ki iss bhulbhulaiya se ap sakushal aur sehej roop se nikal aayen, aisi kaamna karta hu...

    apki hi tarah ek bhatka musafir...
    apka dost..
    ANURAG.

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