बुखार, कमजोर और सिरदर्द के चलते मैने 4 सितंबर को अपना कोरोना टेस्ट कराया। 6 सितंबर को सुबह उठते ही फोन की घंटी बजी स्क्रीन पर लैंड लाइन का नंबर देख मैं समझ गया कि जिला प्रशासन के कंट्रोल रूम से फोन आया है। रिसीव करते ही मेरी आशंका सही साबित हुई। दूसरी तरफ से आवाज आयी "आपकी कोरोना रिपोर्ट पॉजीटिव आयी है…" इतना सुनते ही मुझे घबराहट उलझन और कमजोरी महसूस होने लगी। फोन पर बात करते हुए मैं बिस्तर पर बैठ गया। कंट्रोल रूम से बोल रहे युवक ने जरूरत पड़ने पर भर्ती होने और होम क्वारंटाइन के नियम कायदे समझाते हुए कंट्रोल रूम, हैलो डॉक्टर और टोल फ्री नंबर बताए लेकिन मैने बिना कोई नंबर नोट किए हां हां बालते हुए बात खतम किया और फोन काटकर कुछ देर तक बिस्तर पर बैठा रहा। समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें? अस्पताल मे भर्ती हो जाएं या होम क्वारंटाइन रहते हुए इलाज कराएं। रात बिरात हालत खराब होने पर क्या होगा? इसे लेकर डर भी था। तुरंत जीशान भाई को फोन किया पूछा कि जरूरत पड़ने पर कहां भर्ती हुआ जा सकता है? उन्होंने केजीएमयू का सुझाव दिया लेकिन भर्ती होने के लिए सीएमओ से रेफरल लेटर बनवाना पड़ेगा लिहाजा मैने निखिल भाई को फोन कर लेटर बनवाने को कह दिया। इसके बाद मैं जरूरी सामान पैक करने लगा लेकिन मम्मी पापा समेत परिवार में सभी ने अस्पताल में ज्यादा संक्रमण की आशंका जताते हुए सुझाव दिया कि जब तक कोई दिक्कत नहीं है तब तक घर पर ही रहकर दवाएं खाऊं। सुझाव मानते हुए मैने अपना कमरा भीतर से बंद कर लिया। निखिल भाई ने सिविल अस्पताल के हर दिल अजीज डॉ़ आशुतोष दुबे से दवाएं लिखवाकर व्हाट्सऐप कर दिया। वही दवाएं मैने मंगवाकर रख लीं। इसके बाद नौ दिनों तक पानी, दूध, काढ़ा, खाना या फल समेत कोई भी जरूरी चीज दरवाजे पर रखकर दरवाजा बजा दिया जाता और मैं दरवाजा खोलकर उठा लेता।
दूसरे दिन बुखार कुछ कम हुआ लेकिन गले में टांसिल हो गया। निखिल भाई से "पूछा क्या करें?" तो उसने सिविल अस्पताल के नाक कान गला विशेषज्ञ डॉ पंकज जी का नंबर दिया। वो मेरे पुराने परिचित थे लेकिन काफी समय से उनसे बात नहीं हुई थी। झिझकते हुए फोन किया कि कहीं वो ये ना सोचें कि इतने दिनों बाद बीमार होने पर दवा पूछने के लिए फोन कर रहे हैं। लेकिन पंकज जी का रिस्पॉन्स तीन साल पहले वाला ही था। मेरे पॉजिटिव होने की बात सुनने के बाद उन्होंने बहुत रिलैक्स अंदाज में कहा "तो क्या है? कोई दिक्कत तो नहीं है? कुछ दिन घर पर आराम करिए।" इसपर मैंने उन्हें टॉन्सिल और गले में दर्द कि बात बताई। सुनते ही उन्होंने नमक पानी से गरारा करने की सलाह देते हुए नई दवाएं लिखकर वॉट्सएप कर दिया और फोन करके बोले आराम करिए, मनपसंद भोजन करिए और जो दिक्कत हो उसकी दवा लेते रहिए। इसके बाद मैने दवाएं बाजार से मंगवा लीं। बार बार गरारा करने के लिए पानी गरम कर उसमें नमक मिलाने के बजाय मैने पीने वाले पानी की बोतल में पानी गरम करके उसमें नमक मिलाकर रख लिया। सोंचा की जतनी बार पानी पीएंगे उतनी बार गरारा भी हो जाएगा और इसके लिए बार बार बाहर भी नहीं जाना पड़ेगा।
तीसरे दिन सुबह सांस लेने में दिक्कत और उलझन जैसा महसूस होने पर मैने लोहिया अस्पताल के वरिष्ठ कार्डियोलॉजिस्ट डॉ सुदर्शन को फोन किया। उन्होंने सभी लक्षण, दवाओं का ब्योरा और रिपोर्ट्स की जानकारी लेने के बाद पूछा कि ब्लड प्रेशर कितना है? मैने मशीन से नापा तो 150/110 था। बातचीत के दरम्यान मैने उन्हें पीने वाले पानी में नमक मिलाकर दिन भर पीने की जानकारी भी दी। इसपर उन्होंने कहा कि इतना नमक शरीर में जाएगा तो उसका दुष्प्रभाव तो होगा ही हालांकि उन्होंने उन्होंने तुरंत टेल्मा 40 दवा लेने की सलाह दी और बीपी लगातार बढ़ा रहने पर इस दवा को एक महीने तक नियमित लेने को कहा। दवा लेने के 15 मिनट बाद ब्लड प्रेशन सामान्य हो गया और उलझन और सांस लेने में दिक्कत भी काफी कम हो गई। इस बीच यूं ही बैठे बैठे लखनऊ असोसिएशन ऑफ प्रैक्टिसिंग पैथॉलजिस्ट ऐंड माइक्रोबायॉलजिस्ट के डॉ़ पीके गुप्ता को फोन किया। उन्होंने हालचाल पूछा तो उन्हें कोरोना संक्रमण होने की बात बताते हुए सुबह उलझन और सांस लेने में दिक्कत की बात बतायी। पूरी बात सुनने के बाद उन्होंने सांस को नापने का नया फार्मूला दिया। बोले गिनकर बताइए कि एक मिनट में आप कितनी बार सांस ले रहे हैं। मैने गिना तो एक मिनट में 16 बार आया। इसपर वो बोले कि यह तो बिल्कुल सामान्य है। एक मिनट में 20 से ज्यादा होने पर माना जाता है कि सांस ज्यादा हो रही है लेकिन 15 से 20 तो बिल्कुल सामान्य है। यह सुनने के बाद एक बार फिर मुझे राहत महसूस हुई और एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार हुआ।
चौथे दिन से बीपी नॉर्मल हो गया और टांसिल घटने लगा लेकिन कफ और खांसी कम होने का नाम नहीं ले रही थी। साथ ही ऐसा लग रहा था कि सीने में कफ जमा है। कफ और खांसी कम न होने पर मैने केजीएमयू में मल्मनरी मेडिसिन के प्रो सूर्यकांत जी को फोन किया। उन्होंने पूरी बात सुनने के बाद पूछा कि भाफ ले रहे हो? मैने जवाब दिया हां सुबह दोपहर और रात का भोजन करने के बाद नियमित पांच से 10 मिनट भाफ ले रहा हूं। उन्होंने गलत तरीके से भाफ लेने की आशंका जताते हुए पूछा कि कैसे भाफ ले रहे हो? मैने बताया कि भगोने में पानी उबालकर तौलिए से चेहरा ढककर भाफ लेता हूं। उन्होंने हंसते हुए कहा कि मुझे पता था कि तुम गलत तरीके से भाफ ले रहे हो। इसके बाद उन्होंने कहा कि भाफ सीधे मुंह में जानी चाहिए चेहरे पर नहीं। इसके लिए अगर भाफ लेने की मशीन नहीं है तो अखबार को दोने (लईया चना बेंचने वाले कागज को जिस तरह से मोड़कर रखते हैं के आकार) जैसा बना लो और नुकीले वाले हिस्से में थोड़ा छेद कर दो। भगोने को इस दोने के बड़े हिस्से से ढककर नुकीले वाले हिस्से पर मुंह लगाकर सीधे भाफ लो। ऐसा करने से कफ और खांसी में भी राहत होगी। इसके बाद उन्होंने रात में नींद और खांसी के लिए दो दवाएं बतायीं। जिसका काफी फायदा हुआ और कफ धीरे धीरे कम होने लगा।
इस बीच छठे दिन मुझे दस्त आने लगी दस्त के कारण कमजोरी भी हो गई। अब मेरे दिमाग में यह घूमने लगा कि कोरोना संक्रमण बढ़ने पर डायरिया हो जाता है। मुझे लगा कि मुझे संक्रमण ज्यादा हो गया है इसीलिए दस्त आने लगी है। मैने तुरंत सिविल अस्पताल के डॉ़ पंकज श्रीवास्तव को फोन किया। उन्होंने बताया कि संक्रमण का यह लक्षण है लेकिन घबराने की जरूरत नहीं है। इतना कहते हुए उन्होंने इलेक्ट्रॉल पीने की सलाह देते हुए एक दवा लिख भेजी। दवा लेने का असर हुआ और सातवें दिन से दस्त बंद हो गई।
आठवें दिन कुछ बेहतर महसूस होने लगा भूख भी लगने लगी लेकिन कभी कभी उलझन और घबराहट महसूस होने लगती थी। सारी रिपोर्ट नॉर्मल होने के बावजूद यह दिक्कत हो रही थी। मुझे लगा कि यह साइकोलॉजिकल है। ऐसे में मैने बलरामपुर अस्पताल के मनोचिकित्सक डॉ़ प्रवीण को फोन किया। उन्होंने मेरी शरुआती बात सुनते ही बिना पूछे सारे लक्षण बता दिए और बोले कि कोरोना से ठीक होने वाले दर्जनों लोग उनके पास काउंसिलिंग के लिए आ रहे हैं। संक्रमण से ठीक हुए मरीजों को लगता कि कोरोना दोबारा हो जाएगा, दिल बैठा जा रहा है, सांस बीच बीच में टूट रही है, घबराहट नहीं खतम हो रही है। कुछ ऐसे हैं जिन्हें अपने बाद परिवार का क्या होगा? इसे लेकर चिंता है। उन्होंने मुझे में काउंसलिंग के लिए बुलाने के साथ ही भ्रम से दूर निकलने की सलाह देते हुए एक दवा बतायी। मैने दवा तो खरीद ली लेकिन उनकी काउंसलिंग का असर रहा कि मुझे दवा खाने की जरूरत ही नहीं पड़ी और यह दिक्कत धीरे धीरे खतम हो गई।
नौवें दिन सुबह से ही मुझे काफी बेहतर महसूस होने लगा। मैने निखिल भाई को फोन करके जांच कराने की बात कही। उन्होंने सीएमओ टीम को जांच के लिए भिजवाया। शाम सात बजे मेरा सैंपल हुआ जिसकी रिपोर्ट निगेटिव आ गई। हालांकि मेरे दिमाग में रिपोर्ट को लेकर भ्रम था कि सही रिपोर्ट आयी है या गलत। ऐसे में मैने चार दिन बाद फिर निखिल भाई पर दबाव बनाकर जांच करायी और उसकी रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद मैने राहत की सांस ली हालांकि इसके बाद भी मैं अगले 10 दिनों तक सुबह शाम दूध हल्दी, तीन बार काढ़ा, तीन बार भाफ और प्राणायाम के साथ हल्का व्यायाम करता रहा जो अब मेरी दिनचर्या का हिस्सा हो गया है।
टिप्प्णी :
नौ दिन तक कोरोना से जूझकर निकलने के बाद मुझे आशो प्रवचन के दौरान पढ़ी गई उनकी एक कहानी याद आ गई। एक गांव के बाहर महात्मा झोंपड़ी डालकर ध्यान में रमे हुए थे। उन्होंने एक छाया को गांव में घुसते देखा। उसे रोककर पूछा तुम कौन हो? और कहां जा रहे हो? छाया बोली मैं मृत्यु हूं और गांव के पचास लोगों का समय पूरा हो गया है उन्हें लेने जा रही हूं। महात्मा ने उसे प्रणाम किया और दोबारा ध्यान में रम गए। कुछ देर बाद छाया को वापस आते देखा तो मृत्यु 100 से ज्यादा लोगों को लिए जा रही थी। महात्मा ने उसे रोका और कहा तुमने तो पचास कहा था और सौ से ज्यादा को ले जा रही हो। ऐसा क्यों? इसपर मृत्यु बोली कि मैं तो पचास को ही लेने आयी थी लेकिन बाकी मेरी दहशत में मर गए हैं।